Ashish Kumar

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लेखनी प्रतियोगिता -29-Aug-2022

"गिल्ली डंडा" कविता

बचपन के सब खेल निराले
पर सबसे निराला अपना गिल्ली डंडा

ना कोई खर्चा ना कोई चंदा
तोड़ी टहनी बनाया डंडा
काट-छांट कर गुल्ली बनाई
हो गया काम अपना चंगा

सुबह-शाम मिलते हम जिगरी यार
मस्त हो जाती अपनी टीम तैयार
हरफनमौला हर एक खिलाड़ी
अपनी बारी की रहती मारामारी

पहले छोटी सी घुच्ची बनाएं
गुल्ली रखकर डंडा घुमाएं
बस तीन प्रयासों तक भाग्य आजमाएं
मेहनत जाती बेकार जो मौका गवाएं

पर बीच में गुल्ली लपकी जाए
खेल खत्म उसका हो जाए
चेहरे पर उसके मायूसी छाए
बाकी खिलाड़ी जश्न मनाए

सबसे तेज जो डंडा घुमाए
गिल्ली को सबसे दूर पहुंचाए
निशाना उसका सबसे चंगा
जीत जाता फिर वह बंदा

कभी सर फूटे कभी नाक टूटे
कभी चमचमाती अगली दांत टूटे
थोड़ा है यह खतरे का खेल
पर नहीं टूटता कभी अपना मेल

सब के बचपन की याद दिलाता
जो भी देखता वहीं रुक जाता
सच में खेल यह सबसे उम्दा
लोटपोट हो जाता हर एक बंदा

               - आशीष कुमार
          मोहनिया, कैमूर, बिहार
       मो० नं० - 8789441191

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21 Comments

Renu

31-Aug-2022 01:50 PM

👍👍

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shweta soni

31-Aug-2022 09:12 AM

Behtarin rachana

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Punam verma

30-Aug-2022 08:44 PM

Nice

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